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जीवन और मृत्यु के बारे में ज्यादा जानकारी किसी को नहीं होती है। हर व्यक्ति अपनी अलग अलग धारणा बनाए हुए बैठा है, मगर इसके बारे में सभी को सही से जानकारी होनी ही चाहिए। क्योंकि हम सभी को ये तो पता ही है कि हमें कर्म के हिसाब से ही फल मिलते हैं और वो इसी जन्म में हम भोगकर ही जाते हैं। अगर बात करें पुराणों की तो पुराण में भी जीवन और मृत्यु के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है। गरुण पुराण में तो मृत्यु के बारे में बहुत ही संक्षिप्त में बताया गया है।

इसके अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के लिए भी समय होता है। जिस तरह से हर काम को करने के लिए कोई निश्चित समय होता है और व्यक्ति को कब क्या करना है ये सब पहले से ही लिखा होता है, बस ठीक ऐसे ही मृत्यु का भी एक निश्चित समय होता है। जिस वक्त आपकी मृत्यु लिखी होगी, उसी वक़्त आपको जाना होगा।

इसके अलावा एक और मृत्यु के बारे में आप सभी ने अवश्य सुना होगा जिसे अकाल मृत्यु कहते हैं। अक्सर आपके आसपास के लोग अकाल मृत्यु के बारे में बातें किया करते होंगे। क्या आपको पता है कि अकाल मृत्यु आखिर होता क्या है और जब किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद क्या होता है? अगर नहीं तो आज इस लेख में आपको हम इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।

● अकाल मृत्यु क्या होता है?

अगर हमें ये जानना है कि अकाल मृत्यु होने के बाद क्या होता है तो उससे पहले हम सभी के लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि आखिर ये अकाल मृत्यु होता क्या है।

गरुण पुराण के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन के 7 चक्र होते हैं। हर मनुष्य को जीवन में इन 7 चक्रों को पूरा करना रहता है। अगर कभी कोई मनुष्य इन 7 चक्रों को पूरा नहीं कर पाता है या फिर कह लीजिए कि वो अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो मरने के बाद भी उसे कष्टों से छुटकारा नहीं मिलता है। मनुष्य को मरने के बाद भी ढेर सारे कष्टों को झेलना पड़ता है।  

गरुण पुराण में अकाल मृत्यु के बारे में भी बताया गया है। इस पुराण के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना में, जल में डूबने से, या सांप के काटने से, या फिर किसी रोग के कारण, या फिर गले में फांसी का फंदा लगने से, या फिर भूख से पीड़ित होकर, या फिर किसी हिंसक प्राणी के द्वारा मारा जाता है तो ऐसा ही व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। ऐसा गरुण पुराण के सिंहावलोकन अध्याय में बताया गया है। इसके अलावा बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन गरुण पुराण में उसी आत्महत्या को सबसे ज्यादा घ्रणित और निंदनीय अकाल मृत्यु बताया गया है।

● अकाल मृत्यु हो जाने के बाद क्या होता है?

ऐसा माना जाता है कि अगर कोई आत्महत्या करता है तो इसका मतलब यह होता है कि वह ईश्वर का अपमान करता है। वहीं जिन लोगों की मृत्यु प्राकृतिक रूप से होती है, उन लोगों को 3 या फिर 10 या फिर 13 या फिर 40 दिनों के भीतर ही दूसरा शरीर प्राप्त हो जाता है। लेकिन जो लोग आत्महत्या करते हैं उन लोगों की जीवात्मा पृथ्वी लोक पर ही भटकती रहती है। ऐसा माना जाता है कि ये आत्मा तब तक पृथ्वी लोक पर भटकती है जब तक वह आत्मा प्रकृति के द्वारा जो उसका निर्धारित जीवन चक्र है उसको पूरा नहीं कर लेती है। इस अवस्था में जो जीवात्मा होती है उसे ‘अगति’ कहा जाता है। ऐसे में न तो जीवात्मा को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और न ही नरक लोक की प्राप्ति होती है।

जिन आत्मा की मृत्यु अकाल तौर पर होती है उन्हें सुख, भूख, प्यास, संभोग, क्रोध, दोष, वासना, राग आदि की पूर्ति के लिए अंधकार में ही भटकते रहना पड़ता है। ये आत्मा तब तक अंधकार में भटकती रहती है जब तक उस आत्मा का परमात्मा के द्वारा निर्धारित जो जीवन चक्र होता है वो पूरा नहीं हो पाता है। जब वो चक्र पूरा हो जाता है तो आत्मा को मुक्ति मिल जाती है।

प्राकृतिक रूप से मरने वाले लोगों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन कुछ लोगों की प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती है जैसा कि अभी हमने आपको ऊपर बताया, तो उन लोगों की जो आत्मा है वो भटकती रहती है। यही भटकती आत्मा बाद में भूत प्रेत बन जाती है और लोगों को परेशान करती है। भूत प्रेत जो शब्द है वो हमेशा अशरीरी अतृप्त आत्माओं के लिए ही उपयोग किया जाता है। इस स्तिथि में होता क्या है कि मनुष्य का शरीर तो नष्ट हो जाता है लेकिन उसकी आत्मा का संसार से बंधन बंधा ही रहता है। जब कोई इंसान मरता है तो सबसे पहले उसके हाथ पैर सुन्न हो जाते हैं, इसके बाद उसका शरीर सुन्न हो जाता है और सबसे अंत में व्यक्ति के मस्तिष्क से हृदय का जो सम्बंध है वो टूट जाता है। फिर जो जीवात्मा होती है वो शरीर से निकल जाती है।

जब कोई व्यक्ति जहर खाने से, अचानक चोट लगने से, शरीर के जल जाने से, या फिर किसी अन्य दुर्घटना की वजह से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उन्हीं की आत्माएं जो होती हैं वो भूत प्रेत बन जाती हैं। यही वो स्तिथि होती है जिसमें व्यक्ति का शरीर तो नष्ट हो जाता है परंतु जो आत्मा होती है वो वहीं आसपास भटकती रहती है या फिर शरीर के किसी हिस्से के पास में ही रहती है। इसके साथ ही आत्मा की जो भी इच्छाएं होती हैं वो भी बनी रहती हैं लेकिन जैसा कि हम जान ही चुके हैं कि आत्मा के पास शरीर तो होता नहीं है तो वो उन इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाती है।

ऐसे में ये आत्माएं अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने आसपास के व्यक्तियों को कष्ट देना शुरू कर देती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन आत्मा के जो पितृ होते हैं वो इसलिए असंतुष्ट होते हैं क्योंकि उनकी मुक्ति के लिए कोई भी प्रयास लोगों के द्वारा नहीं किये जा रहे होते हैं और लोग अपना जीवन अच्छे से व्यतीत कर रहे होते हैं। यही कारण है कि अकाल मृत्यु हो जाने के बाद जो अतृप्त आत्मा होती है वो  अपने कार्यों को पूरा करने के प्रयास में दूसरे लोगों के शरीर में अपना ठिकाना बना लेती है।

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