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पिता-की-पुण्यतिथि

मोक्ष को प्राप्त करना आसान नहीं होता है। इस के बारे में तो हम सभी जानते हैं। मोक्ष का मतलब होता है दुनिया से मुक्त हो जाना। दुनिया से मुक्त होना भी आसान नहीं होता है। जिसने अपने जीवन में अच्छे कर्म किये होते हैं, उसे प्राण त्यागने में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है और उसके प्राण आसानी से निकल जाते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में रहते हुए अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उसके प्राण आसानी से नहीं निकल पाते हैं और प्राण निकलते समय उसे बहुत दर्द को महसूस करना होता है।

इसके अलावा जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके बाद उसे पूरे विधि विधान के साथ दुनिया से विदा किया जाता है। जिस तरह से जन्म होने पर बच्चे का स्वागत विधि विधान से किया और छठी वगेरह मनाई जाती है। वैसे ही मृत्यु होने पर तेरहवीं वगेरह मनाई जाती है। इसी के साथ हिंदू धर्म में पुण्यतिथि को लेकर भी बहुत अधिक मान्यता है। आज हम इस लेख में पुण्यतिथि के बारे में जानेंगे और साथ में हम यह भी जानेंगे कि पिता की पुण्यतिथि पर हमें क्या करना चाहिए।

पुण्यतिथि क्या होती है?

पुण्यतिथि दरअसल वही तारीख होती है जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु होती है। अगर आसान शब्दों में हम इसे समझें तो यह व्यक्ति का मरण दिन होता है। हर साल व्यक्ति के मरण दिन को ही पुण्यतिथि के तौर पर जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर आप सभी यह बात तो जानते ही हैं कि जब किसी का जन्म होता है तो उस तिथि को जन्म तिथि के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में मृत्यु को अशुभ माना जाता है और जन्म को शुभ माना जाता है।

अगर हम इसकी तुलना इतिहास से या फिर देवताओं के काल से करें, तो ऐसे में रामायण को महाभारत की तुलना में अधिक पवित्र माना जाता है। इसके पीछे मृत्यु और जन्म का एक विशेष कारण है। जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि हिंदू धर्म में जन्म को अधिक महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि रामायण में भगवान राम के जन्म को दर्शाया गया है, जिस वजह से यह महाभारत से ज्यादा पवित्र है। महाभारत में भले ही श्रीकृष्ण मौजूद थे, लेकिन उसमें कहीं भी श्रीकृष्ण के जन्म के बारे में बात नहींकी गई है। हालांकि भगवत पुराण में श्रीकृष्ण के जन्म को दर्शाया गया है, यही कारण है कि भगवत पुराण को भी रामायण की तरह ही पवित्र समझा जाता है।

फिर चाहे धर्म कोई भी क्यों न हो, हर धर्म में इस बात पर बल दिया जाता है कि जितनी भी आत्मा होती है उनका एक विशेष दिन होता है। और इस विशेष दिन को ही जीवित लोगों के द्वारा याद रखा जाता है। इसी दिन को हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है। इस दिन मरे हुए व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए विधि विधान से पूजन किया जाता है।

पिता की पुण्यतिथि पर श्राद्ध किया जाना चाहिए;-

हर साल श्राद्ध मनाया जाता है। हर साल श्राद्ध भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस तक मनाए जाते हैं। मान्यता के अनुसार जिस दिन पूर्वज की मृत्यु होती है, यानी जिस दिन मृत व्यक्ति की पुण्यतिथि होती है, उसी दिन उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जो पूर्वज होते हैं वो आश्विन कृष्ण पक्ष में 15 दिनों के लिए वापस धरती पर लौटकर आते हैं और जब उनका श्राद्ध किया जाता है तो उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है। पितृ पक्ष के दौरान जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्णव श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ यह भी मानना है कि अगर उस समय में पूरे रीति रिवाज के साथ श्राद्ध किया जाता है तो पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है।

श्राद्ध में तर्पण किया जाता है और इसका बहुत अधिक महत्व है। जब आप पिता का श्राद्ध करते हैं तो तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। वहीं यदि आप

  • उड़द,
  • सफेद पुष्प,
  • केले,
  • गाय के दूध,
  • घी,
  • खीर,
  • स्वांक के चावल,
  • जौ,
  • मूंग,

गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो इससे आपके पितर

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