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धर्म चाहे जो हो, दान या परोपकार करना हर धर्म में एक समान माना जाता है। परोपकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘परि’ + ‘उपकार’, इसका अर्थ है दूसरों का उपकार करना। दूसरों का उपकार करने व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। परोपकार या दान को सभी धर्मों में सबसे ऊपर रखा गया है और ऐसा माना जाता है कि दान करने से इंसान के बुरे कर्म भी अच्छे कर्मों में बदल जाते हैं और उनके पापों से उन्हें मुक्ति मिल जाती है।

वहीं हिंदू धर्म में दान को सर्वोपरि माना गया है। हिंदू धर्म में इससे बड़ा कोई और पुण्य कर्म ही नहीं है। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करता तो इससे उस ज़रूरतमंद का आशीर्वाद दान देने वाले व्यक्ति को प्राप्त होता है और इससे व्यक्ति की कुंडली में जो भी दोष होते हैं वो भी दूर हो जाते हैं। अगर वैदिक ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो ऐसा बताया गया है कि हर व्यक्ति को अपनी कुंडली में स्थित ग्रहों के हिसाब से ही दान करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

इन सबके साथ ही दान में गाय दान यानी गौदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। ये हर रूप में विशेष माना गया है। ये हर मनुष्य के लिए कल्याणकारी होता है। गाय का दान व्यक्ति कभी भी कर सकते हैं लेकिन अगर पितृपक्ष में गाय को दान दिया जाता है तो इसका बहुत अधिक महत्व होता है। आइये इसके बारे में हम आपको थोड़ा विस्तार से बताते हैं।

● गाय का दान

गाय का दान सबसे बड़ा दान है। इससे बड़ा और कोई दान नहीं है। जो लोग गौदान करते हैं उनके सारे पाप कम हो जाते हैं और उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग तब गाय दान करते हैं जब उनके किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है। परिजनों की मृत्यु के बाद जब गाय का दान किया जाता है तो इसकी विशेष मान्यता होती है। ऐसा माना जाता है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसकी मृत आत्मा को स्वर्ग लोक या नरक लोक का रास्ता तय करना होता है। तो जब मृत आत्मा ये सफर तय करती है तो बीच में उसे वैतरणी नदी को पार करना होता है।

रास्ते में पड़ने वाली इस वैतरणी नदी को मृत आत्मा गाय की पूंछ को पकड़कर ही पार करती है। इसीलिए गौदान को विशेष माना गया है। क्योंकि गाय दान करने से दान करने वाले व्यक्ति के मृत परिजनों की आत्मा को वैतरणी नदी को पार करने में आसानी होती है।

● एक बार गौदान अवश्य करना चाहिए

ऐसा शास्त्रों में बताया गया है कि हर इंसान को जीवन रहते एक बार गाय का दान अवश्य ही करना चाहिए। गाय को दान करने के भी कुछ नियम बताए गए हैं। ऐसा माना जाता है कि जो गौदान ब्राह्मणों को किया जाता है वो सबसे श्रेष्ठ और उत्तम होता है। इसके अलावा शास्त्रों में ये भी बताया गया है कि कौन सी गाय को, किस विधि से ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

● गौदान ऐसे ब्राह्मण को करें जो न हो अंगहीन

गौदान हमेशा ऐसे ब्राह्मण को करना चाहिए जिसका कोई भी अंग खराब न हो। न ही ब्राह्मण अंगहीन होना चाहिए। गौदान ऐसे ही ब्राह्मण को करना चाहिए जो अंगहीन न हो और जो यग का हवन करवा सकता हो। साथ ही ब्राह्मण का परिवार संपन्न भरा पूरा होना चाहिए और उसकी पत्नी भी जीवित होनी चाहिए। सदाचारी और शांत ब्राह्मण गाय के दान के लिए बेहतर माने जाते हैं।

● किस तरह से गौदान किया जाना चाहिए?

ऐसा माना जाता है कि गाय के जितने भी अंग होते हैं उन सभी में देवताओं का वास होता है। इसीलिए गाय का दान करने से पहले उसका श्रृंगार किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि गाय के सींगों में ब्रह्मा और विष्णु का निवास है। गाय के सिर में महादेव, माथे पर गौरी और नथुनों में कार्तिकेय का वास है। गाय की आंखों में सूर्य-चंद्रमा, नाक में कंबल और अश्वतर नाग, कानों में अश्विनी कुमार, दांतों में वासुदेव, जीभ में वरुण और गले में देवराज इंद्र। बालों में सूर्य की किरणें, खुर में गंधर्व, पेट में पृथ्वी और चारों थनों में चारों समुद्र रहते हैं। गौमुत्र में गंगा और गोबर में यमुना का निवास माना है।

हमेशा ऐसी गाय को दान में दिया जाता है जिसके सींग चमकदार खुर हों। दान दी जाने वाली गाय ऐसी होनी चाहिए जो दूध देने में सक्षम हो। कभी भी वृद्ध गाय का दान नहीं किया जाता है। गाय दान करते समय व्यक्ति कांसे के बर्तन में घी, दूध के साथ तिल डालकर उसकी पूंछ पर रखे और फिर उसे दान करे।

● गौदान के लिए कौन सा समय है सबसे उत्तम?

वैसे तो गौदान कभी भी किया जा सकता है। परंतु पितृपक्ष के दौरान जब गाय का दान किया जाता है तो इसे सबसे उत्तम माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति दो तरह से गौदान कर सकते हैं। एक तो उनके लिए जिन परिजनों की मृत्यु हो चुकी है और दूसरा दान स्वयं के लिए किया जाता है। पितरों को खुश करने के लिए और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पितृपक्ष में गाय का दान अवश्य ही किया जाना चाहिए।

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