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जन्म और मृत्यु ये तो प्राकृतिक है। जिसने धरती पर जन्म लिया है, उसको धरती को छोड़कर जाना ही होता है। यही जीवन चक्र कहलाता है। यह जीवन का चक्र हमेशा घूमता रहता है। कर्मों के अनुसार फल भी इसी जीवन चक्र में ही आपको मिल जाते हैं। इस जीवन चक्र की शुरुआत होती है बच्चे के जन्म से, जन्म के समय बच्चे के माता पिता बच्चे की सेवा करते हैं और उन्हें बेहतर से बेहतर जीवन प्रदान करने की कोशिश करते हैं। इसके बाद जीवन चक्र की समाप्ति होती है इंसान की मृत्यु पर। इंसान की मृत्यु के पहले जो बुढ़ापा आता है वो बिल्कुल बचपन की तरह होता है। इस बुढ़ापे में व्यक्ति के बच्चे उसकी सेवा करते हैं। फिर जब मृत्यु हो जाती है तो उनकी आत्मा को शान्ति दिलाने के लिए श्राद्ध आदि करते हैं।

हिंदू धर्म में किसी भी पुत्र के पुत्रत्व को तभी सफल माना जाता है, जब वो अपने माता पिता के जीवित रहने पर उनकी निःस्वार्थ सेवा करे तथा उनके प्राण त्याग देने के बाद मृत्यु तिथि यानी बरसी और पितृ पक्ष में उनका पूरे रीति रिवाज के साथ श्राद्ध करे। पितृ पक्ष की शुरुआत तब होती है जब कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, ये बात पुराणों में कही गई है।

ये तो हम सभी जानते हैं कि जीव को मुक्ति दिलाने का जो काम है वो मृत्यु के देवता यमराज का है। यमराज जीव को पूरी तरह से मुक्त कर देते हैं। पितृ लोक पृथ्वी के सबसे ज्यादा करीब इसी ग्रह योग में होता है (श्रवण पूर्णिमा से आश्रि्वन अमावस्या तक)। मृत्यु लोक में जो भी पितर होते हैं वो कुशा की नोक पर विराजमान होकर ही पहुंचते हैं। कभी कभी तो ये  बिना आह्वान किये ही अपने परिजनों के यहां पहुंच जाते हैं। फिर ये उनके द्वारा किये गए भोजन और तर्पण से ही प्रशन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं जो कि बहुत शक्तिशाली होता है। अगर पितर प्रशन्न तो समझ लीजिए देवता प्रशन्न। पितरों के प्रशन्न रहने से ही घर में सुख समृद्धि आती है। जिस घर में पितर प्रशन्न नहीं रहते हैं, वहां सुख समृद्धि का वास नहीं होता है।

पुराणों में पितरों को बहुत अधिक महत्व दिया गया है और इन्हें देवताओं से भी ऊंचा बताया गया है। इसी के साथ ही इन्हें चंद्रमा से भी दूर बताया गया है। जितने भी घर के पूर्वज होते हैं (जैसे दादा दादी, माता पिता आदि) ये सब पितर की श्रेणी में आते हैं। वहीं जो मृत गुरुजन होते हैं या फिर आचार्य होते हैं उन्हें भी पितर की श्रेणी में ही रखा जाता है।

जब श्राद्ध किया जाता है तब कुछ लोग कौआ, गाय और कुत्ते के लिए भी भोजन निकालते हैं। इसके पीछे भी कारण है। ऐसा माना जाता है कि जो गाय होती है वो वैतरणी पार करवाती है तथा कुत्ता और कौआ यम के नज़दीक होते हैं। इसीलिए श्राद्ध को पूरे विधि विधान से किया जाना चाहिए। आइये जानते हैं कि श्राद्ध कर्म कैसे किया जाना चाहिए।

श्राद्ध क्या होता है?

श्राद्ध के नाम से ही पता चलता है कि किसी के प्रति श्रद्धा भाव को प्रकट करना। यही कारण है कि जो भी लोग मृत हो गए हैं, उनका श्राद्ध किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता पार्वती और शिव को श्रद्धा विश्वास रुपिणौ है।

पूर्वजों का श्राद्ध किस दिन किया जाना चाहिए?

अगर पितरों की आत्मा की शांति के लिए कोई भी व्यक्ति श्राद्ध करना चाहता है तो वो हर माह इस काम को कर सकता है, लेकिन पितृ पक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। अब इसमें भी एक विशेष तिथि होती है जिसमें आपको पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। अगर आपको ये पता है कि आपके पूर्वज का देहांत किस तिथि को हुआ है तो आप पितृ पक्ष में उनकी देहांत की तिथि को ही उनका श्राद्ध करें। कई बार ऐसा भी होता है कि आपको वो तिथि याद नहीं रहती है जिस दिन पूर्वज का निधन हुआ हो। ऐसे में आप आश्विन अमावस्या को उनका श्राद्ध कर सकते हैं। इसी आश्विन अमावस्या को ही सर्वपितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। जिन लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है यानी समय के पहले जिनकी मौत हो जाती है, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाना चाहिए। अगर आप पिता का श्राद्ध करते हैं तो इसके लिए अष्टमी तिथि उपयुक्त होती है, वहीं यदि आप माता का श्राद्ध करते हैं तो इसके लिए नवमी तिथि काफी उपयुक्त मानी जाती है।

श्राद्ध कर्म में किस विधि को अपनाना चाहिए?

जिस दिन आपको श्राद्ध करना हो, उस दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद पितृस्थान को साफ सुथरा करें और इसे गाय के गोबर से लीपकर, इसे गंगाजल से पवित्र करें। इसके बाद अगर संभव हो सके तो घर के आंगन में और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं। इसके बाद घर की जो महिलाएं हैं वो शुद्ध होकर ही पितरों के लिए भोजन तैयार करें और एक बात का विशेष ख्याल रखें कि भोजन एकदम सफाई से बना हुआ होना चाहिए। इसके बाद जो श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ अधिकारी माना जाता है जैसे कि ब्राह्मण आदि को न्योता देकर श्राद्ध के लिए आमंत्रित करें। इसके बाद आप ब्राह्मणों से पितरों की पूजा और तर्पण आदि करवाएं।  इसके बाद आप पितरों की जो निमित्त अग्नि होगी उसमें

  • दही,
  • गाय का दूध,
  • खीर
  • घी आदि अर्पित करें।

किसी को भोजन देने से पहले आपको भोजन में से 4 ग्रास निकालने हैं।

  • पहला गाय के लिए,
  • दूसरा कुत्ते के लिए,
  • तीसरा कौवे के लिए और 
  • चौथा ग्रास अतिथि के लिए।

इसके बाद आपको ब्राह्मण को स्नेहपूर्वक भोजन करवाना है। भोजन कराने के बाद आप उनका मुखशुद्धि करवाएं, उन्हें दान दक्षिणा दें और उनका सम्मान करें। इसके बाद ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें और पितरों तथा ग्रहस्थ के लिए शुभकामनाएं प्रदान करें। पितृपक्ष के दौरान पूरे विधि विधान से श्राद्ध किया जाना चाहिए। इससे पितर तो प्रशन्न होते ही हैं और साथ ही घर में सुख शांति बनी रहती है। अगर श्राद्ध कर्म अच्छे से नहीं किया जाता है तो पितर प्रशन्न नहीं होते हैं और घर में कोई न कोई कष्ट लगा ही रहता है। इसीलिए श्राद्ध कर्म पूरे विधि विधान से और रीति रिवाजों के साथ ही किया जाना चाहिए।

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